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भारत की 7 प्रचलित कला शैलियाँ

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भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही कई प्रकार की कला शैलियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। इस लेखे में हम जानेंगे भारत की 7 कला शैलियों के बारे में।

1. पट्टचित्र 

पेंटिंग की पट्टचित्र शैली ओडिशा के सबसे पुराने और सबसे लोकप्रिय कलाओं में से एक है। पट्टचित्र नाम संस्कृत शब्दों – ‘पट्ट’ तथा ‘चित्र’ से बना है, जिसका क्रमशः अर्थ है – कैनवास तथा चित्र। इस प्रकार, पट्टचित्र कैनवास पर की गई पेंटिंग है, जिसमें अधिकतर पौराणिक चित्रण है। इस शैली में पेंटिंग को रंगीन रूपांकनों और सरल थीम्स द्वारा चित्रित किया जाता है। 

2. मधुबनी पेंटिंग

मधुबनी पेंटिंग को मिथिला आर्ट भी कहा जाता है क्योंकि यह बिहार के मिथिला क्षेत्र में फला-फूला है। चमकीले और हल्के रंगों से बनी रंग-बिरंगे रेखा चित्र इस पेंटिंग की विशेषता है। चित्रकला की यह शैली पारंपरिक रूप से क्षेत्र की महिलाओं द्वारा किए जाते हैं, हालांकि आजकल माँग को पूर्ण करने के लिए पुरुष भी इसमें शामिल हो आगे हैं। ये पेंटिंग रूपांकनों और प्राकृतिक रंगों के उपयोग के कारण लोकप्रिय है।

3. तंजौर कला

तंजौर या तंजावुर कला की उत्पत्ति 1600 ई. में हुई और इसे तंजावुर के नायकों द्वारा प्रोत्साहन दिया गया। तंजावुर पेंटिंग में सोने की पन्नी का उपयोग किया जाता है जो उसे चमकीला और वास्तविक रूप देता है। लकड़ी के तख्तों पर बने ये चित्र देवी, देवताओं और संतों के प्रति भक्ति भाव को दर्शाते हैं। 

4. फड़

इस पेंटिंग की उत्पति राजस्थान में हुई। फड़ मुख्य रूप से स्क्रॉल पेंटिंग है जो लोक देवताओं पाबूजी को समर्पित है। जिस 15 फीट लंबे कैनवास या कपड़े पर इसे चित्रित किया जाता है, उसे फड़ कहा जाता है। यह पेंटिंग वानस्पतिक रंगों से बनाई जाती है जिसमें देवताओं के जीवन और वीर कर्मों का का वर्णन होता है।

5. कलमकारी

कलमकारी का शाब्दिक अर्थ है – ‘कलम से चित्रकारी ’ । भारत में कलमकारी दो प्रकार की है: पहली – मछलीपट्टनम, जिसकी उत्पति आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम से और दूसरी – श्रीकालहस्ती जिसकी उत्पति चित्तूर से हुई है। मछलीपट्टनम ब्लॉक-मुद्रित कला है, जबकि श्रीकालहस्ती के अंतर्गत कपड़े पर कलम द्वारा पेंटिंग की जाती है। वर्तमान में, कलमकारी कला का उपयोग साड़ियों, पारंपरिक परिधानों पर किया जाता है और इसमें वनस्पतियों और जीवों से लेकर महाभारत या रामायण जैसे महाकाव्यों को भी दर्शाया जाता है।

6. वारली

वारली कला भारत के सबसे पुराने कला रूपों में से एक है तथा इसकी उत्पति 2500 ईसा पूर्व में भारत के पश्चिमी घाट में वारली जनजातियों के द्वारा हुई । इस कला में वृत्तों, त्रिभुजों, और वर्गों का प्रयोग करके कई आकृतियाँ बनाई जाती हैं जोकि विभिन्न दैनिक क्रियाकलापों जैसे- मछली पकड़ने, शिकार करने, त्योहारों, नृत्यों आदि को चित्रित करती हैं। सभी पेंटिंग लाल या गहरे रंग की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं, जबकि आकृतियों का रंग सफेद है।

7. गोंड

मध्य प्रदेश के गोंडी जनजाति के लोगों ने इन कलाकृतियों का निर्माण किया है। ये कृतियाँ प्रकृति के साथ जीवों के संबंध की भावना से प्रेरित हैं, और मुख्यतः वनस्पतियों और जीवों का चित्रण करती हैं। इसके लिए प्रयुक्त रंग चारकोल, गाय के गोबर, पत्तियों और रंगीन मिट्टी से बनाए जाते हैं। ये आकृतियाँ डॉट्स और लाइन्स से निर्मित होती हैं।