Site stats कबीर बेदी की पहली शादी का सच – जब प्यार, भरोसा और टूटते रिश्ते एक साथ बिखर गए – Brain Berries

कबीर बेदी की पहली शादी का सच – जब प्यार, भरोसा और टूटते रिश्ते एक साथ बिखर गए

Advertisements

कबीर बेदी और उनकी पहली पत्नी प्रोतिमा गुप्ता की शादी फिल्मी दुनिया में हमेशा चर्चा का विषय रही। यह रिश्ता न केवल एक खुले विवाह के नाम से जाना गया, बल्कि इसके उतार-चढ़ाव ने यह दिखा दिया कि भावनाओं और स्वतंत्रता के बीच संतुलन साधना कितना कठिन होता है। शुरुआत में दोनों ने पारंपरिक शादी को निभाने की पूरी कोशिश की, लेकिन समय के साथ रिश्ते में दरारें पड़ने लगीं। जब विश्वास की नींव कमजोर होने लगी, तब दोनों ने खुले विवाह का रास्ता चुना, लेकिन वह भी एक असफल प्रयोग साबित हुआ।

जब रिश्तों में आई दरार और खुली सोच की हदें टूटीं

कबीर और प्रोतिमा के बीच भावनात्मक दूरी तब और बढ़ी जब दोनों अलग-अलग राहों पर बढ़ने लगे। यह रिश्ता इतना जटिल हो गया था कि बाहरी संबंधों ने इसे और उलझा दिया। जब एक साथी किसी और से जुड़ने लगा, तो दूसरा भी वैसा ही करने लगा—और इसी क्रम में आत्मसम्मान, अहंकार और अधिकार की भावना रिश्ते को गहराई से चोट पहुंचाने लगी। ऐसा नहीं था कि यह सोच-समझकर लिया गया फैसला था; यह तो सिर्फ एक आखिरी कोशिश थी एक टूटते रिश्ते को जोड़े रखने की।

प्रोतिमा का डांस के लिए सब कुछ छोड़ जाना

एक मोड़ ऐसा भी आया जब प्रोतिमा ने अचानक घर छोड़ दिया और ओडिसी नृत्य सीखने निकल पड़ीं। उन्होंने न सिर्फ पति को, बल्कि बच्चों को भी पीछे छोड़ दिया। कबीर बेदी ने उस समय बच्चों की जिम्मेदारी उठाई। यह एक ऐसा फैसला था जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। यह स्थिति उस समय और जटिल हो गई जब कबीर की नज़दीकियाँ अभिनेत्री परवीन बॉबी से बढ़ने लगीं।

जब दो औरतों के बीच फंसी एक भावनात्मक लड़ाई

कबीर बेदी की ज़िंदगी में जब प्रोतिमा से दूरी बढ़ चुकी थी, तब एक नया रिश्ता परवीन बॉबी के रूप में उनके करीब आया। यह रिश्ता भी भावनाओं से भरा था, लेकिन बीते रिश्तों की परछाइयाँ यहां भी साफ़ दिखने लगीं। परवीन और प्रोतिमा के बीच एक अजीब-सा तनाव बना रहता। परवीन को हमेशा यह आशंका रहती थी कि प्रोतिमा अब भी कबीर की ज़िंदगी में वापस आना चाहती हैं।
हालात और अधिक उलझ जाते जब कबीर को बच्चों से मिलने के लिए प्रोतिमा से मिलना पड़ता—ऐसे हर मौके पर परवीन बेचैन हो जातीं। मगर एक पिता के तौर पर कबीर के लिए यह मिलना-जुलना ज़रूरी था। बच्चों की परवरिश और उनके भविष्य के लिए प्रोतिमा से संवाद बनाए रखना उनके लिए न टाला जा सकने वाला फ़र्ज़ बन चुका था।

एक पिता की जिम्मेदारी और करियर का संघर्ष

कबीर बेदी के लिए यह दौर बहुत कठिन था। एक तरफ करियर का दबाव था, दूसरी तरफ बच्चों की परवरिश और रिश्तों की खींचतान। परवीन बॉबी ने कभी सौतेली मां की भूमिका नहीं निभाई, लेकिन बच्चों का उनसे मिलना-जुलना होता रहता था। बावजूद इसके, कबीर ने अकेले ही बच्चों के साथ समय बिताने को प्राथमिकता दी। यह एक ऐसा समय था जो मानसिक और भावनात्मक रूप से उन्हें झकझोर रहा था, पर उन्होंने परिस्थिति का सामना पूरे साहस से किया।

कबीर बेदी की ज़िंदगी का यह अध्याय न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत कहानी है, बल्कि यह इस बात की मिसाल भी है कि रिश्तों में स्वतंत्रता और प्रतिबद्धता के बीच संतुलन बिठाना कितना जटिल हो सकता है। ‘ओपन मैरिज’ जैसे विचार भले ही आधुनिक सोच का प्रतीक लगें, लेकिन जब दिल, भावना और बच्चे शामिल हों, तो कोई भी निर्णय आसान नहीं होता।