15 अगस्त 1947 हमारे देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। स्वतंत्रता की कीमत उस समय के लोगों ने समझी जो पराधीन थे। ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाने वाला देश उनके लिए चुभने वाली सलाखों का पिंजरा बन गया। सन 1857 से आरंभ हुआ स्वतंत्रता प्राप्त करने का आंदोलन 15 अगस्त 1947 को समाप्त हुआ और हमारा देश स्वतंत्र हो गया। दो सौ साल की गुलामी और सौ साल के संघर्ष के बाद भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यहाँ इस स्वतंत्रता दिवस से संबंधित कुछ दिलचस्प तथ्य हैं जिनके विषय में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
15 अगस्त 1947 रात 12 बजे आजादी की घोषणा क्यों हुई-
ज्योतिषियों के अनुसार भारत को स्वतंत्रता मिलने की जो तिथियाँ घोषित की गई थीं (3 जून से 15 अगस्त 1947 के मध्य) वह अशुभ और अपवित्र थीं। लेकिन लार्ड माउंटबेटन 15 अगस्त पर अड़े थे। ज्योतिषियों ने यह समाधान निकाला कि भारत के स्वतंत्र होने की घोषणा रात 12 बजे कर दी जाए क्योंकि अंग्रेजी समयानुसार नए दिन की शुरूआत रात 12 बजे से होती है जबकि भारतीय समयानुसार सूर्योदय होने पर नया दिन आरंभ होता है।
हमारा राष्ट्रीय ध्वज-
हर आजाद देश का अपना एक राष्ट्र ध्वज होता है। हमारे देश का कोई आधिकारिक ध्वज नहीं था। 1906 में लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बने गैर आधिकारिक ध्वज को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया। 1907 में भीकाजी कामा द्वारा फहराया ध्वज भी इसी ध्वज के समान था लेकिन उसकी ऊपरी पट्टी पर कमल का फूल बना था। तीसरा ध्वज 1917 में आया। 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सभा में गांधी जी को विजयवाडा के एक युवक ने झंडा दिया, जिसमें लाल (केसरिया) और हरा रंग थो, जो हिंदु और मुस्लिम धर्म का प्रतीक था। बाद में अन्य धर्मों के प्रतीक के रूप में गांधी जी ने इसमें सफेद रंग की पट्टी और एक चलता चरखा जुड़वाया। 22 जुलाई 1947 में संविधान सभा ने इस ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज का स्थान दिया और इसमें चरखे की जगह सम्राट अशोक का धर्म चक्र बना दिया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा स्वतंत्र भारत का राष्ट्र ध्वज बन गया।
हमारा राष्ट्रगान-
स्वतंत्रता के समय भारत का अपना कोई राष्ट्रगान नहीं था। गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित जन-गण-मन को 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान का स्थान दिया गया। कहा जाता है कि 1911 में जब दिल्ली को कलकत्ता की जगह भारत की राजधानी बनाया गया, तब गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर से जार्ज पंचम के स्वागत के लिए गीत लिखने को कहा गया। उन्होंने बंगाली भाषा में ‘जन-गण-मन’ कविता लिखी जिसमें पांच छंद थे। लेकिन राष्ट्रगान के रूप में इसके पहले छंद को ही स्वीकृति मिली।
15 अगस्त 1947 के जश्न में महात्मा गांधी की अनुपस्थिति-
जिस समय दिल्ली, लाल किले में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, गांधी जी वहाँ से हजारों मील दूर बंगाल में अनशन पर बैठे थे। वह वहाँ हिंदू-मुस्लिम दंगे को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे।
गोवा का विलय-
आजादी के समय गोवा को भारत से अलग कर इसे पुर्तगाली राज्य बना दिया गया था। 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा पर विजय प्राप्त कर इसे फिर से भारत का हिस्सा बनाया।
नेहरू और सरदार वल्लभ का पत्र-
जब 15 अगस्त को स्वतंत्रता मिलने के दस्तावेज तैयार हो गए, तब नेहरूजी और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर कहा कि यह जश्न स्वाधीनता दिवस का जश्न है और वह राष्ट्रपिता होने के कारण जश्न में शामिल हो उन्हें आशीर्वाद दें। महात्मा गांधी ने इसका यह जवाब दिया कि जब कलकत्ते में हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे को मार रहे हैं, उस समय वह दंगा रोकने की जगह जश्न कैसे मना सकते हैं।
नेहरू का ऐतिहासिक भाषण-
14 अगस्त 1947 को आधी रात में पं0 जवाहर लाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ दिया। यह भाषण उन्होंने वायसराय लॉज से दिया था जिसे आज राष्ट्रपति भवन के रूप में जाना जाता है।
भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा का निर्धारण-
हाँलाकि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत विभक्त होकर आधिकारिक रूप से स्वतंत्र हो गए थे, फिर भी इन दोनों की सीमा रेखा नहीं बनी थी। रेडक्लिफ लाइन ने इनकी सीमा रेखा की घोषणा 17 अगस्त को की।
15 अगस्त 1947 को समाचार-पत्रों की सुर्खियाँ-
15 अगस्त 1947 की सुबह हर भारतवासी के लिए एक नया सवेरा लेकर आई। सुबह की शुरूआत अखबार के साथ होती है। इस सुबह के अखबार भी आजादी की दास्तां से रंगे हुए थे। हिंदुस्तान की सुर्खी थी ‘शताब्दियों की दासता के बाद भारत में स्वतंत्रता का मंगल प्रभात’ हिंदुस्तान टाइम्स भी पीछे नहीं था उसकी पहली खबर थी ‘इंडिया इंडिपेंडेंटः ब्रिटिश रूल्स एंडस।’ विश्व के प्रसिद्ध समाचार पत्रों की सुर्खियों में भी भारत था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रचार का अभाव-
15 अगस्त 1947 को संचार माध्यम का अभाव होने के कारण यह खबर पूरे देशवासियों को नहीं मिल सकी। उस समय खबरें सिर्फ समाचार-पत्रों में छपती थीं और कुछ जगहों पर रेडियो पर प्रसारित होती थीं। सुदूर इलाकों में इनका अभाव होने के कारण यहाँ यह खबर देर से पहुँची।