जहाँ 2019 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने शानदार विजय हासिल की वहीं राहुल गांधी अपने गढ अमेठी में ही पराजित हुए। भाजपा की 300 सीट के मुकाबले में कांग्रेस ने 50 सीट जीती। राहुल गांधी अभी संसद में बैठेगें, क्योंकि केरल में दूसरी सीट पर उन्होंने वायनाड से चुनाव जीता है । क्या कांग्रेस की यह स्थिति इस ओर इशारा करती है कि भारत की राजनीति में गांधी वंश समाप्त होने वाला है। शायद यह सबूत इसी ओर इशारा करते हैं-
1. अमेठीमेंहुईहार–
ऐसा
मानना है
कि जो
भी उत्तर
प्रदेश को
जीतता है,
वह
देश पर
राज्य करता
है। अमेठी
की सीट
प्रतिष्ठा की
लड़ाई थी।
यह वह
जगह है
जहाँ से
उनके पिता
राजीव गांधी
और माँ
सोनिया गांधी
लड़े और
जीत गए
थे। उन्होंने
खुद 15
सालों
से इसे
संभाला था।
उन्होंने अमेठी
के हर
घर में
एक भावनात्मक
पत्र भेजा
था जिसमें
‘मेरा अमेठी
परिवार’ संबोधन
था। उस
जगह वह
एक हाई
प्रोफाइल अभिनेत्री
स्मृति ईरानी
से पराजित
हुए। लोग
कांग्रेस की
जीत की
अपेक्षा नहीं
कर रहे
थे लेकिन
अमेठी के
परिणाम से
वह स्तब्ध
हैं और
पूछ रहे
हैं क्या
गांधी युग
समाप्त हो
गया?
2. निराशाजनकप्रदर्शन–
कांग्रेस
के निराशाजनक
प्रदर्शन के
कारण श्री
गांधी के
नेतृत्व पर
उँगलियाँ उठ
रही हैं।
कई विश्लेषक
पहले से
ही कांग्रेस
पार्टी में
बदलाव की
माँग कर
रहे हैं।
2019 के
चुनावी परिणाम
कांग्रेस की
असफलता की
घोषणा कर
रहे हैं।
ऐसी खबर
हे कि
दिल्ली में
श्री गांधी
ने पद
छोड़ने का
प्रस्ताव रखा
था। इस
विषय पर
कांग्रेस नेता
मणिशंकर अय्यर
का कहना
है कि
कांग्रेस उनके
नेतृत्व पर
सवाल नहीं
उठाएगी और
न ही
उनके इस्तीफे
को स्वीकार
करेगी।
3. पार्टीकीदुर्दशा–
लखनऊ की स्थानीय पार्टी के प्रवक्ता, बृजेन्द्र कुमार सिंह के अनुसार समस्या गांधी सत्ता के साथ नहीं बल्कि पार्टी की दुर्दशा के साथ थी। पार्टी का ढाँचा कमजोर था। लोग पद पर स्थापित होने के लिए लगे हुए थे। पार्टी के जो भी प्रयास थे वह असफल रहे। खास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में गठबंधन का प्रयास। इस हार को राहुल की नहीं वरन पार्टी रणनीति की हार मानना चाहिए।
4. कमजोरअभियानऔरविकल्प–
2019 का चुनाव कांग्रेस का सबसे खराब राजनैतिक प्रदर्शन था। कांग्रेसी प्रतिद्वंदी जो भाजपा के समक्ष खड़े थे वह अपना आत्मविश्वास खो चुके थे। उन्हें अपने जीतने की उम्मीद नहीं थी। कांग्रेस के घोषणा पत्र पर जनता ने विश्वास नहीं किया। हर गरीब परिवार को प्रति वर्ष 72,000/ रूपए देने की घोषणा मजाक बन गई। श्री गांधी ने जिस भावी जीत का वादा किया था, वह निराश पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सपना थी। और मोदी लहर के समक्ष कांग्रेस के दिग्गज पराजित हो गए।
5. व्यक्तित्वप्रतियोगिता–
कई कांग्रेसी इस बात को स्वीकार करते हैं कि राहुल गांधी एक अजेय व्यक्तित्व से प्रतियोगिता में हार गए। उनके रास्ते में सबसे बड़ी रूकावट ब्रांड मोदी थे। भले ही मोदी पिछले चुनाव में किए गए सभी वादों को पूरा करने में असफल रहे, लेकिन वह अभी भी लोगों को अपनी सरकार की नीति समझाने में सक्षम हैं। यह पहला मौका नहीं जब श्री गांधी की ऐसी हार हुई है, 2014 में भी वह पराजय का सामना कर चुके हैं। इसके बाद, इनकी पार्टी कई राज्यों के चुनाव भी हार गई। सोशल मीडिया पर भी वह एक बड़बोले और स्पष्टवादी नेता साबित हुए। उनकी कही बातें पलट कर उन्हीं पर वार कर गई।
6. मतदाताओंकाअविश्वास–
गांधी
परिवार का
स्वर्णिम नाम
कुछ वर्षों
से धूमिल
हो गया
है। मतदाताओं
का कांग्रेस
से भरोसा
उठ गया
है। खासकर
शहरी मतदाताओं
और युवाओं
के लिए
नेहरू और
इंदिरा गांधी
अतीत की
भूली बिसरी
कहानी है।
भारत की
राजनीति में
उनका योगदान
प्रांसगिक नहीं
रहा। मतदाताओं
को 2004 से
2014 तक
कांग्रेस शासन
का वह
समय याद
है जब
कांग्रेस भ्रष्टाचार
और विवाद
में डूबी
थी। और
राहुल गांधी
मतदाताओं का
विचार बदलने
में असफल
रहे।
7. कांग्रेसकीविचारधारा–
लंबे समय से कुछ कांग्रेसियों का यह विचार है कि गांधी वंश का उत्ताधिकारी राहुल गांधी के स्थान पर प्रियंका गांधी को होना चाहिए। वह इंदिरा गांधी का प्रतिरूप साबित हो सकती है। माना जाता है कि भाई-बहन करीब हैं और वह एक दूसरे के विरोधी नहीं हो सकते। हालांकि प्रियंका गांधी ने कुछ दिन के प्रचार में यह साबित किया था कि हवा का रूख बदला जा सकता है।
इन सभी सबूतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वास्तव में 2019 का चुनाव कांग्रेस की एक बड़ी विफलता है, जो उसका नामो निशान मिटा सकती है। लेकिन कांग्रेसियों के अनुसार 1984 में भाजपा सिर्फ दो सीट पर थी। अगर वह वापसी का रास्ता बना सकती है तो कांग्रेस और गांधी परिवार क्यों नहीं।