कोविड-19 वैक्सीन विकास के दौरान सीरम इंस्टिट्यूट को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा I आइये ऐसी ७ चुनौतियों से आपको रूबरू कराएं I
1. वैक्सीन विकास और निर्माण चुनौतीपूर्ण
कोविड-19 वैक्सीन से संबंधित प्रथम चुनौती ये थी कि जिस वैक्सीन का निर्माण और विकास कार्य किया जा रहा था, वह मनुष्य पर कारगर होगा कि नहीं। वैक्सीन का प्रभावशाली परीक्षण कार्य भी कंपनी के लिए एक प्रमुख चुनौती रही।
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2. वैक्सीन निर्माण में लगने वाला समय
सामान्यतः वैक्सीन निर्माण में लंबा वक्त लगता है, जो 6 वर्ष से 8 वर्ष तक होता है। कंपनी के समक्ष ये चुनौती भी रही कि किस प्रकार से वैक्सीन का निर्माण कम-से-कम समय में किया जा सके। साथ ही ये चुनौती भी रही कि यदि वायरस अपना स्ट्रेन बदल लेता है तो क्या विकसित वैक्सीन नए स्ट्रेन के वायरस पर प्रभावकारी होगा।
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3. वैक्सीन बनने के बाद लोग इस्तेमाल करेंगे या नहीं
सीरम इंस्टिट्यूट ने H1N1 समस्या के दौरान फ्लू वैक्सीन विकसित किया था। लेकिन 2 वर्ष पश्चात कोई भी वैक्सीन लेना नहीं चाहते थे। ऐसा होने का कारण भारत में जगरूकता की कमी होना है। यूरोप और अमेरिका के उलट भारत में वयस्क आमतौर पर फ्लू वैक्सीन या किसी अन्य प्रकार का टीका नहीं लेते हैं। भारत में लोग बीमारी होने पर इलाज कराने के लिए दौड़ पड़ते हैं। इसके लिए भारत में जागरूकता अभियान चलाने की जरुरत है।
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4. देश की सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराना
हमारे देश में एक साथ पूरे देश की सम्पूर्ण जनसंख्या को टीका देने की जरुरत कभी नहीं हुई। हमारे देश में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चों के टीकाकरण किए जाते हैं। इसलिए इतनी अधिक मात्रा में टीका बनाना सीरम इंस्टिट्यूट और देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आयी।
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5. वैक्सीन की निगरानी और सप्लाई चेन
वैक्सीन को संचालित करने और उसके प्रभावों की निगरानी के लिए सप्लाई चेन और स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता भी प्रमुख चुनौतियाँ रही हैं। सप्लाई चेन की समस्या का हल तो आसान हो सकता है लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या (135 करोड़ से अधिक) के लिए वैक्सीन करने के लिए स्वाथ्यकर्मियों के एक प्रशिक्षित और संगठित समूह की जरुरत एक बड़ी चुनौती है।
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6. कोल्ड चेन मैनेजमेंट
कंपनी के समक्ष कोल्ड चेन प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी जो इस बात पर निर्भर करता था कि भारत में जो टीका लगेगा उसके स्टोरेज के लिए कौन सा तापमान अनुकूल होगा। भारत में वैक्सीन स्टोर करने के लिए सीमित क्षमता उपलब्ध है। यदि वैक्सीन के लिए शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस या शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान की आवश्यकता होती है तो ऐसे टीकों के लिए तरल रूप में भंडारण और परिवहन की आवश्यकता होती है। ऐसी व्यवस्था भारत में बहुत कम संख्या में उपलब्ध है।
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7. वैक्सीन ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और उस पर होने वाला खर्च
कोविड-19 टीकों की परिवहन के लिए देश में अगले दो वर्षों में विभिन्न आपूर्ति श्रृंखला सेट-अप में 200000 शिपमेंट 1 करोड़ 50 लाख कूलिंग बॉक्स के साथ-साथ 15000 हवाई जहाज (फ्लाइट्स) की जरुरत होगी। यह संख्या एक विशाल संख्या है जिसके लिए 2 वर्ष के दौरान भारत सरकार को 80000 करोड़ रूपए खर्च करने पड़ेंगे। यह एक बड़ी रकम है जो कि सरकार को खर्च करने हैं। अतः यह एक बड़ी चुनौती है।
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